भारत की महत्वपूर्ण औद्योगिक नीतियाँ एवं अधिनियम।Important Industrial Policies and Acts of India.

 

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भारत की महत्वपूर्ण औद्योगिक नीतियां एवं अधिनियम

Important Industrial Policies and Acts of India -
औद्योगिक नीति (Industrial policy) किसी भी सरकार के उस चिंतन को कहते हैं, जिसके अंतर्गत औद्योगिक विकास का स्वरूप निश्चित किया जाता है तथा जिसको प्राप्त करने के लिए नियम व सिद्धांतों को लागू किया जाता है।
औद्योगिक नीति में उन सभी सिद्धांतों, नियमों व रीतियों का विवरण होता है जिन्हें उद्योगों के विकास के लिए अपनाया जाता है। यह नीति विशेष रूप से भावी उद्योगों के विकास, प्रबंध व स्थापना से संबंध रखती है। इसे बनाते समय देश का आर्थिक ढांचा, सामाजिक व्यवस्था, उपलब्ध प्राकृतिक व तकनीकी साधन व सरकारी चिंतन का विशेष तौर पर ध्यान रखा जाता है।

औद्योगिक नीति का महत्व

Importance of Industrial Policy -
देश के तीव्र और उचित औद्योगिक विकास (Industrial development) में एक सुनिश्चित सुनियोजित और प्रेरणादायक औद्योगिक नीति(Industrial Policy) की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। किसी भी देश के औद्योगिक विकास के लिए औद्योगिक नीति निम्न प्रकार से महत्वपूर्ण होती है
  • सरकार को निश्चित कार्यक्रम बनाने में सहायता करती है।
  • राष्ट्र को मार्गदर्शन में निर्देशन देती है।
  • देश के औद्योगिक विकास को सुनिश्चित कर देश व अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करती है।
  • जनमानस को अपने निश्चित जीविका का साधन बनाने में सहायता करती है।

भारत में औद्योगिक नीति का विकास

Development of industrial policy in India -
द्वितीय विश्वयुद्ध के अनुभवों के बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में औद्योगिक नीति की आवश्यकता महसूस की गई, इसके फलस्वरूप वर्ष 1944 में पहली बार भारत में 'नियोजन एवं पुनर्निर्माण विभाग' की स्थापना की गई।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार द्वारा देश में तीव्र अधिक विकास के लिए औद्योगिक नीति की आवश्यकता के मद्देनजर दिसंबर, 1947 में एक 'औद्योगिक सम्मेलन' आयोजित किया गया। इस सम्मेलन की सिफारिश पर भारत सरकार द्वारा प्रथम औद्योगिक नीति की घोषणा की गई।

प्रमुख औद्योगिक नीतियाँ व अधिनियम

Major Industrial Policies and Acts -
भारत में स्वतंत्रता के बाद से अब तक कई औद्योगिक नीतियाँ घोषित की जा चुकी है। इनका संक्षिप्त विवरण -

औद्योगिक नीति 1948 

(Industrial Policy 1948) -
भारत सरकार के तत्कालीन उद्योग मंत्री डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा मिश्रित अर्थव्यवस्था के आधार पर तैयार की गई प्रथम औद्योगिक नीति की घोषणा 6 अप्रैल, 1948 को की गई थी। इस नीति में आगामी कुछ वर्षों तक विद्यमान औद्योगिक इकाइयों का राष्ट्रीयकरण ना करने और सरकारी स्वामित्व में नई औद्योगिक इकाइयां स्थापित करने का प्रावधान किया गया। इस नीति के अंतर्गत उद्योगों को निम्न चार श्रेणियों में विभाजित किया गया है।

प्रथम श्रेणी (पूर्णतया सरकारी क्षेत्र) -

इस श्रेणी में सुरक्षात्मक और राष्ट्रीय हित के लिए शस्त्र निर्माण और युद्ध सामग्री, परमाणु शक्ति के उत्पादन और नियंत्रण तथा रेल यातायात के स्वामित्व और प्रबंध को रखा गया। इस संबंध को केंद्र सरकार के एकाधिकार क्षेत्र में रखा गया।

द्वितीय श्रेणी (अधिकांश सरकारी क्षेत्र) -

कोयला, लौह-इस्पात, वायुयान निर्माण, पोत निर्माण, टेलीफोन, तार और बेतार यंत्र निर्माण तथा खनिज तेल उद्योगों को इस श्रेणी में शामिल कर 'आधारभूत उद्योगों' की संज्ञा दी गई है।

तृतीय श्रेणी (सरकार द्वारा नियमित क्षेत्र) -

इस श्रेणी के अंतर्गत कुछ उपभोक्ता उद्योगों ( सूती वस्त्र,सीमेंट, चीनी, कागज, रबड़ आदि) और राष्ट्रीय महत्व के कुछ आधारभूत उद्योग शामिल किए गए। इन उद्योगों की कुल संख्या 18 थी।

चतुर्थ श्रेणी (पूर्णतया निजी क्षेत्र) -

शेष सभी उद्योगों को इस श्रेणी में रखा गया। इन उद्योगों पर सरकार के सामान्य नियंत्रण के तहत निजी क्षेत्र के पूर्ण अधिकार का प्रावधान किया गया।
इसके अलावा प्रथम औद्योगिक नीति के अंतर्गत सरकार द्वारा लघु एवं कुटीर उद्योगों के विकास का दायित्व राज्य सरकारों को सौंपा गया तथा इनकी सहायता के लिए विभिन्न स्तरों पर विशेष संस्थाओं के निर्माण पर भी जोर दिया गया।

औद्योगिक नीति 1956

Industrial Policy 1956 -
 प्रथम औद्योगिक नीति के बाद देश में हुए अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तनों के बाद नई औद्योगिक नीति की आवश्यकता महसूस होने लगी। इसके मद्देनजर 30 अप्रैल, 1956 को भारत की नई औद्योगिक नीति घोषित की गई, जिसमें आधारभूत एवं भारी उद्योगों के विकास पर बल दिया गया। इस नीति में उद्योगों का वर्गीकरण निम्न तीन वर्गों में किया गया।

प्रथम वर्ग (सार्वजनिक क्षेत्र) -

Class I (Public Sector) -
इस वर्ग में अस्त्र-शस्त्र और सैन्य सामग्री, अणु शक्ति, लौह एवं इस्पात, भारी ढलाई, भारी मशीनें, खनिज तेल आदि 17 उद्योगों को शामिल किया गया। इन उद्योगों को पूर्णतया सरकार के अधिकार क्षेत्र में रखने का प्रावधान किया गया।

द्वितीय वर्ग (मिश्रित क्षेत्र) -

Class II (mixed area)-
इस वर्ग में कुल 12 उद्योग (मशीन औजार, अन्य खनिज, एलुमिनियम एवं अन्य अलौह धातुएं, लौह मिश्रित धातु, औजारी इस्पात, रसायन उद्योग, औषधियां, उर्वरक,कृतिम रबर, कोयले से बनने वाले कार्बनिक रसायन, रासायनिक घोल, सड़क परिवहन और समुद्री परिवहन) शामिल किए गए।

तृतीय वर्ग (निजी क्षेत्र) -

Class III (private sector) -
शेष सभी उद्योग इस वर्ग में रखे गए। इनके संबंध में सरकारी नियंत्रण एवं नियमन की व्यवस्था कर इनके विकास व स्थापना का कार्य निजी व सहकारी क्षेत्रों को दे दिया गया।

औद्योगिक नीति 1991

Industrial policy 1991 -
भारत की औद्योगिक नीति में व्यापक परिवर्तन करने के लिए सरकार द्वारा, 24 जुलाई 1991 को नई औद्योगिक नीति घोषित की गई। इस नीति के प्रमुख उद्देश्यों में सुद्रढ़ रणनीति संरचना, लघु उद्योगों का विकास, आत्म-निर्भरता, एकाधिकार की समाप्ति, श्रमिकों के हित का संरक्षण, विदेशी विनियोग और सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका जैसे तत्वों को स्थान दिया गया। इस नीति के प्रमुख प्रावधान निम्न है।

विदेशों से पूंजीगत साजों सामान का आयात 

 नई नीति के अंतर्गत अनुसूचित - iii में शामिल प्राथमिकता वाले उद्योगों को छोड़कर अन्य मामलों में विदेशी अंश पूंजी की पूर्व स्वीकृति लेना अनिवार्य बनाया गया। इसके अलावा विदेशी पूंजी के विनियोग वाली इकाइयों पर पुर्जे, कच्चे माल और तकनीकी जानकारी के आयात के मामले में सामान्य नियम लागू किए गए।

उदार औद्योगिक नीति -

Liberal industrial policy -
इस नीति में 18 उद्योगों को छोड़कर अन्य सभी उद्योगों के लिए लाइसेंसिंग व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया। कोयला, पेट्रोलियम, चीनी, चमड़ा, मोटर कार,बास, कागज तथा अखबारी कागज, रक्षा उपकरण,औषधि इत्यादि 18 उद्योगों में लाइसेंसिंग व्यवस्था अनिवार्य की गई।

सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका -

Role of public sector -
लोक उपक्रमों के प्रति नवीन दृष्टिकोण अपनाया गया। इसके साथ ऐसे लोक उपक्रमों को अधिक सहायता प्रदान की गई जो है औद्योगिक अर्थव्यवस्था के संचालन के लिए आवश्यक हैं।

औद्योगिक विकास एवं विनियमन अधिनियम 1951

Industrial Development and Regulation Act 1951 -
भारत सरकार द्वारा अपनी औद्योगिक नीतियों को कार्यान्वित करने के लिए साधन मुहैया कराने की दृष्टि से कई विधान लागू किए गए हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है औद्योगिक विकास एवं विनियमन अधिनियम (IDRA) 1951, जो औद्योगिक नीति संकल्प वर्ष 1948 के अनुसरण में लागू किया गया था। यह अधिनियम केंद्र सरकार द्वारा भारत में उद्योगों के विकास और पंजीकरण के प्रयोजनार्थ तैयार किया गया था। 
इस अधिनियम के तहत उद्योगों के विकास के लिए आवश्यक कदम उठाने, औद्योगिक विकास की पद्धति और दिशा को नियंत्रित करने तथा जनहित में औद्योगिक उपक्रमों के कार्यकलापों, निष्पादन और परिणामों को नियंत्रित करने की शक्तियां प्रदान की गई। यह अधिनियम उद्योग और वाणिज्य मंत्रालय द्वारा उसके औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग (DIPP) के माध्यम से प्रशासित किया जाता है।
इस अधिनियम में यह प्रावधान भी है, कि जब किसी और औद्योगिक उपक्रम से संबंधित कोई मामला जांच के अधीन हो तो केंद्र सरकार किसी भी समय कोई निर्देश जारी कर सकती है, जब तक केंद्र सरकार द्वारा इन निर्देशों में कोई परिवर्तन ना किया जाए अथवा इन्हें रद्द न किया जाए तब तक यह निर्देश प्रभावी रहेंगे।
केंद्र सरकार को उद्योगों के विकास संबंधी मामलों, कोई नियम बनाने और अधिनियम को प्रकाशित करने से संबंधित अन्य किसी मामले पर सलाह देने के प्रयोजन से 'केंद्रीय सलाहकार परिषद' की स्थापना करना इस अधिनियम का प्रमुख उपबंध है।

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Constitution-

Important QNA -



प्रश्न - नियोजन एवं पुनर्निर्माण विभाग की स्थापना की गई?

उत्तर - 1944 ई. में

प्रश्न - प्रथम औद्योगिक नीति 1948 किस आधार पर तैयार की गई थी?

उत्तर -मिश्रित अर्थव्यवस्था के आधार पर।

प्रश्न - प्रथम औद्योगिक नीति की घोषणा कब और किसके द्वारा की गई थी?

उत्तर - भारत सरकार के तत्कालीन उद्योग मंत्री डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा 6 अप्रैल 1948 को।

प्रश्न - प्रथम औद्योगिक नीति,1948 को कितने श्रेणियों में बांटा गया है?

उत्तर - प्रथम औद्योगिक नीति,1948 को चार श्रेणियों में बांटा गया है।

प्रश्न - किस सम्मेलन की सिफारिश पर भारत सरकार द्वारा प्रथम औद्योगिक नीति,1948 की घोषणा की गई थी?

उत्तर - औद्योगिक सम्मेलन 1947।

प्रश्न - औद्योगिक विकास एवं विनियमन अधिनियम (IDRA) कब लागू हुवा था?

उत्तर - औद्योगिक विकास एवं विनियमन अधिनियम (IDRA), 1951 ई. में लागू हुवा था।

प्रश्न - IDRA का पूर्ण रूप क्या है?

उत्तर - Industrial Development and Regulation Act.

प्रश्न - लौह एवं इस्पात को औद्योगिक नीति 1956 के किस वर्ग में रक्खा गया है?

उत्तर - लौह एवं इस्पात को भारतीय औद्योगिक नीति 1956 के प्रथम वर्ग में रक्खा गया है।

प्रश्न - सड़क परिवहन और समुद्री परिवहन को भारतीय औद्योगिक नीति ,1956 के किस वर्ग में रक्खा गया है?

उत्तर - सड़क परिवहन और समुद्री परिवहन को भारतीय औद्योगिक नीति ,1956 के द्वितीय वर्ग में रक्खा गया है।